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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (12)ज़ब औखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक =ज़ब औखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना




रात हो गयी थी, मानव भी थक गया था आज और जल्दी सो गया था, राधिका कमरे में बैठी आशीष से बाते कर रही थी बातों बातों में उसने बताया की गांव का सरकारी अस्पताल बस नाम का ही है, जहाँ डॉक्टर भी नही है, जिसके चलते गांव वालों को इलाज ले लिए शहर जाना पड़ता है


उसकी बात सुन आशीष बोला " इसमें हम क्या कर सकते है? वो तो सरकारी अस्पताल है, सरकार जाने और वहाँ काम करने वाले जाने और वैसे भी वो गांव वाले है, उनका इलाज नीम हकीम से ही हो जाता है,इसलिए वहाँ कोई अच्छा डॉक्टर भी नही है "


राधिका उसकी बात का जवाब तो देना चाहती थी, लेकिन आशीष चिड जाता इसलिए वो खामोश रही और बोली " अच्छा तो कब आ रहे हो यहाँ हमारे पास?


"म,, म,, मैं,, तुमसे किसने कहा की मैं आ रहा हूँ, लगता है मेरी याद आने लगी तुम्हे " आशीष ने कहा

"तो आप नही आ रहे हो,' राधिका ने पूछा

"नही, मैं नही आ रहा हूँ, और अब तुम लोग भी आ जाओ, मानव की छुट्टियां भी खत्म हो रही है, कही और घूमने चलेंगे " आशीष ने कहा

"लेकिन यहां क्यूँ नही आ सकते? यहाँ और भी तो लोग रहते है, ये तुम्हारा घर है, कोई जेल तो नही जहाँ तुम आने से इतना घबराते हो " राधिका ने कहा


"देखो राधिका बात को मत बढ़ाओ, मैंने ज़ब कह दिया की मैं नही आ रहा, बेवजह पिता जी की बाते सुनने, ना वो उस गांव को छोडेंगे और ना ही उनकी ज़िद्द छूटेगी, गांव में ही क्लिनिक खोलने की, कुए का मेंढक बन कर रह जाऊ, वो तो यही चाहते है " आशीष ने कहा


"ठीक है मत आओ हम लोग भी अभी नही आ रहे है, और हाँ अब कॉल भी मत करना, ज़ब मेरा दिल करेगा तब बात कर लूंगी, " राधिका ने कहा और फ़ोन काट दिया


आशीष हेलो हेलो करता रह गया, उसके बाद उसने काफ़ी कॉल की पर कोई फायदा नही हुआ, राधिका फ़ोन बंद करके सो गयी थी


लगता है नाराज़ हो गयी, आशीष ने कहा अपने आप से और फिर खुद भी सो गया


अगला दिन होता, वही दिनचर्या शुरू हो जाती है सबकी, लेकिन आज दीन दयाल जी कुछ अच्छा महसूस नही कर रहे थे इसलिए दोबारा खेत पर नही गए, राधिका और सुष्मा जी बाहर चले गए थे, अब बस मानव और दीन दयाल जी ही बचे थे

मानव अपनी कॉपी में लिखें मुहावरें की तरफ इशारा करके कहता है " दादा जी आज हमें इस मुहावरें पर कहानी बनानी है, आप मेरी मदद करेंगे ना "


"हाँ, हाँ बेटा क्यूँ नही? लाओ दिखाओ जरा, कोनसा मुहावरा है, मैं भी तो देखू " दीन दयाल जी ने कहा

और कॉपी में लिखें मुहावरें को पढ़ते हुए बोले " ज़ब औखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना "


"मतलब दादा जी, ये औखली और मूसल क्या होता है?" मानव ने पूछा


दीना दयाल जी मुस्कुराये और मानव को घर के कोने में रखी औखली और मूसल दिखा कर बोले " ये बड़ी वाली होती है, औखली और ये लम्बा सा कहलाता है मूसल इसके अंदर ज़ब सूखी मिर्च, या फिर अन्य किसी चीज को डाला जाता है और फिर इस मूसल से उसे कुटा जाता है तब वो चीज सुरमा बन जाती है, इसलिए ही हमारे पूर्वजों ने ये लोकती बनायीं की जब औखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना

यानी की ज़ब ख़राब परिस्थिति ने घेर ही लिया है तब हिम्मत और साहस के साथ उसका मुकाबला करना ही समझदारी है


चलो तुम्हे एक कहानी के माध्यम से समझाता हूँ, जो की एक हास्य कहानी है


एक गांव में एक नौजवान रहता था, कद काटी का और रंग रूप में बेहद खूबसूरत था, लेकिन उसके अंदर एक कमी थी की वो आलस का मारा हुआ था, आलस की वजह से वो बहुत सारे काम छोड़ चूका था, एक मुनीम के यहाँ भी उसे लगाया उसके पिता ने लेकिन वहाँ भी नही रुक सका, उसी के साथ साथ खेती बाड़ी भी नही करना चाहता था


फिर एक दिन किसी के ब्याह में उसे एक सुंदर कन्या जो उसके रंग रूप कद काटी के साथ मेल खाती थी, उसे पसंद आ गयी, दोनों में बात चीत हुयी तो पता चला की वो पास ही के गांव की है और जात पात भी मेल खाती है


बस फिर क्या था उस आलसी लड़के को ज़िद्द चढ़ गयी की वो शादी करेगा तो उससे ही करेगा, लेकिन उसके आलस पन से सब बखूबी वाकिफ थे, जो अपना खर्चा खुद नही उठा सकता वो शादी के बाद अपनी पत्नि की ज़िम्मेदारी कैसे निभाएगा, घर से निकल कर बात पंचायत तक पहुंच गयी और आखिर कार दोनों की रजा मंदी जान कर शादी हो गयी


जैसा की हम सब जानते है, शादी एक पवित्र बंधन है जिसको निभाने के लिए बहुत सारे समझौते, स्वयं से करने पड़ते है, दोनों को अपनी अपनी ज़िम्मेदारियां निभानी पडती है, शादी का नाम जितना सरल है लेकिन उसका सफऱ उतना ही मुश्किल है,


शादी के कुछ दिन तो अच्छे से गुज़र गए, जो भी नाते रिश्तेदार आये हुए थे सब चले गए, और जो कुछ पैसा जुडा जुकड़ा था ख़त्म होने की कगार पर था, बिना कमाए सिर्फ खर्च करने से तो कुबेर का खजाना भी ख़त्म हो जाता है


इसलिए अब समय था अपने आलस को एक तरफ रख कर, काम पर जाने का ताकि घर का चूल्हा जल सके, हिम्मत करके वो आलसी लड़का काम पर गया, नही तो घर पर उसकी पत्नि शाम को जूतियों से उसका स्वागत करती अगर हाथ में पैसे नही लाता, मुरझायी सूरत लिए वो खेत की मुंढेर पर बैठा था तब उसके पिता वहाँ आये  जो की जानते थे उसके मन की व्यथा और बोले " बेटा जी अब ज़ब औखली में सर दे ही दिया ही तू मूसलों से क्या डरना " हमने तो तुम्हे समझाया था की शादी ना करो तुमसे उसकी ज़िम्मेदारी नही उठेगी अब अगर शादी कर ली है तो अपने आलस को एक तरफ रख कर इस खेत में काम करो ताकि तुम दोनों हसीं ख़ुशी जीवन जी सको


अपने पिता की बात उसे समझ आ गयी थी, क्यूंकि उसने ही तो ज़िद्द की थी शादी की अपने बारे में जानते हुए भी, अब अगर उसे छोड़ेगा तब भी पंचायत उसे छोड़ने नही देगी और अगर छोड़ भी दिया तो ना जाने पंचायत उसके हक़ में कोनसा फैसला सुनाये इसलिये उसने उन परिस्थिति का सामना किया जिसको उसने स्वयं बुलावा दिया था और फिर बिना डरे साहस के साथ अपने आलस को छोड़ उसने मेहनत करना शुरू कर दी और आखिर कार वो एक मेहनती पति और एक मेहनती बाप बन गया


केसी लगी तुम्हे ये कहानी, अब तुम्हे समझ आ गया होगा इस मुहावरें का अर्थ, दीन दयाल जी ने कहा



जी दादा जी, मुझे समझ आ गया, अब आप आराम कीजिये, मैं जाकर खेलता हूँ, शाम को लिख लूँगा मानव ने कहा और चला गया


दीन दयाल जी मन ही मन अपने आप से बोले " आज अपने पोते की वजह से मैं अपने अतीत में लोट गया था, कितना आलसी था मैं  ये कहकर दीन दयाल जी मुस्कुरा दिए



मुहावरों की दुनिया हेतु 

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10 Comments

अदिति झा

03-Feb-2023 01:18 PM

Nice 👍🏼

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प्रिशा

02-Feb-2023 10:00 PM

👌👌👌👏👏

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